रत्नो द्वारा रोग का उपचार भाग-2 (Treating illnesses with Gemstones Part 2)

भौतिक जगत में रोग का कारण कुछ भी हो लेकिन ज्योतिषीय मत के अनुसार रोग का कारण हमारी कुण्डली में स्थित ग्रह हैं। ग्रहों की स्थिति के अनुसार ही हम समय समय पर रोग से पीड़ित होते हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार रत्नों में रोगों को दूर करने की शक्ति है। आइये देखें किस रोग में कौन सा रत्न पहनना चाहिए।
उच्च रक्तचाप और रत्न चिकित्सा (High Blood pressure and Gemstone Therapy)
चन्द्रमा हृदय का स्वामी है। चन्द्रमा के पीड़ित होने पर इस रोग की संभावना बनती है। जिनकी जन्मपत्री में सूर्य, शनि, चन्द्र, राहु अथवा मंगल की युति कर्क राशि में होती है उन्हें भी इस रोग की आशंका रहती है। पाप ग्रह राहु और केतु जब चन्द्रमा के साथ योग बनाते हैं तब इस स्थिति में व्यक्ति को उच्च रक्तचाप की समस्या का सामना करना होता है। मिथुन राशि में पाप ग्रहों की उपस्थिति होने पर भी यह रोग पीड़ित करता है। इस रोग की स्थिति में 8-9 रत्ती का मूंगा धारण करना लाभप्रद होता है। चन्द्र के रत्न मोती, मूनस्टोन, ओपल भी मूंगा के साथ धारण करने से विशेष लाभ मिलता है।
तपेदिक और रत्न चिकित्सा (tuberculosis & Gemstone Therapy)
तपेदिक एक घातक रोग है। नियमित दवाईयों के सेवन से इस रोग को दूर किया जा सकता है। अगर उपयुक्त रत्नों को धारण किया जाए तो चिकित्सा का लाभ जल्दी प्राप्त हो सकता है। ज्योतिष विधा के अनुसार जब मिथुन राशि में चन्द्रमा, शनि, अथवा बृहस्पति होता है या कुम्भ राशि में मंगल और केतु पीड़ित होता है तो तपेदिक रोग की संभावना बनती है। इस रोग से पीड़ित होने पर पुखराज, मोती अथवा मूंगा धारण करना लाभप्रद होता है।
पैरों में रोग और रत्न चिकित्सा (Leg problem and Gemstone Therapy)
शरीर के अंगों में पैरों का स्वामी शनि होता है। पैरों से सम्बन्धित पीड़ा का कारण शनि का पीड़ित या पाप प्रभाव में होना है। ज्योतिषीय मतानुसार जन्मपत्री के छठे भाव में सूर्य अथवा शनि होने पर पैरों में कष्ट का सामना करना होता है। जल राशि मकर, कुम्भ अथवा मीन में जब राहु, केतु, सूर्य या शनि होता है तब पैरों में चर्म रोग होने की संभावना बनती है। पैरों से सम्बन्धित रोग में लाजवर्त, नीलम अथवा नीली एवं पुखराज धारण करने से लाभ मिलता है।
त्वचा रोग और रत्न चिकित्सा (Skin Disease Gemstone Theraphy)
शुक्र त्वचा का स्वामी ग्रह है। बृहस्पति अथवा मंगल से पीड़ित होने पर शुक्र त्वचा सम्बन्धी रोग जैसे दाद, खाज, खुजली, एक्जीमा देता है। कुण्डली में सूर्य और मंगल का योग होने पर भी त्वचा सम्बन्धी रोग की सम्भावना रहती है। मंगल मंदा होने पर भी इस रोग की पीड़ा का सामना करना पड़ सकता है। जन्मपत्री में इस प्रकार की स्थिति होने पर हीरा, स्फटिक, मूंगा अथवा ओपल धारण करने से लाभ मिलता है।
बवासीर और रत्न चिकित्सा (Piles and Gemstone Therapy)
बवासीर गुदा का रोग है। जन्मकुण्डली का सप्तम भाव गुदा का कारक होता है। जिनकी जन्मपत्री के सप्तम भाव में पाप ग्रहों की उपस्थिति होती है उन्हें इस रोग की संभावना रहती है, मंगल की दृष्टि इस संभावना को और भी प्रबल बना देती है। मंगल की राशि वृश्चिक कुण्डली में पाप प्रभाव में होने से भी बवासीर होने की संभवना को बल मिलता है। अष्टम भाव में शनि व राहु हो अथवा द्वादश भाव में चन्द्र और सूर्य का योग हो तो इस रोग की पीड़ा का सामना करना होता है। इस रोग में मोती, मूनस्टोन अथवा मूंगा धारण करना रत्न चिकित्सा की दृष्टि से लाभप्रद होता है।
नोट रत्न धारण करने से पहले किसी विशेषज्ञ की सलाह लेना चाहिए।
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hume apne bare me sahi gemstone ka nahi malum krpya batade thanx
i am also a good astrologist and tantric your all descriptions are really true.