जैमिनी ज्योतिष (Jaimini Astrology)

हमारे प्राचीन ऋषियों और महर्षियों ने भविष्य का आंकलन करने के लिए अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर ज्योतिषशास्त्र में कई प्रकार के अनुसंधान और प्रयोग किये. ऋषि पराशर और जैमिनी (Saga Jaimini) भी उन महान ज्योतिष शास्त्रियों में से हैं जिन्होंने ज्योतिषशास्त्र (Jaimini Astrology Shashtra) में कई महत्वपूर्ण प्रयोग किये. जैमिनी (Jaimini Jyotish) के अनुसार भविष्य का आंकलन किस प्रकार होता है आइये देखें.
कारकांश लग्न कुण्डली: (Jaimini Karkamsha Lagna Kundli)
जैमिनी ज्योतिष (Jaimini Astrology) में आत्मकारक ग्रह नवमांश कुण्डली में जिस राशि में होता है वह कारकांश राशि (Karkamsha Rashi) कहलाती है. कारकांश राशि को लग्न माना जाता है और अन्य ग्रहों की स्थिति जन्म कुण्डली की तरह होने पर जो कुण्डली तैयार होती है उसे कारकांश लग्न कुण्डली (Karkamsha Lagna Kundali) कहा जाता है. इस कुण्डली के आधार पर ही जैमिनी (Jaimini Jyotish) ज्योतिष में फलकथन किया जाता है.
महर्षि जैमिनी (Saga Jaimini) ने जिस ज्योतिष पद्धति को विकसित किया उसे जैमिनी ज्योतिष (Jaimini Jyotish Shashtra) के नाम से जाना जाता है. इसमें राहु केतु को छोड़कर सभी सात ग्रहों को उनके अंशों के अनुसार विभिन्न कारक के नाम से जाना जाता है. जिस ग्रह का अंश सबसे अधिक होता है आत्मकारक कहलाता है. आत्मकारक के बाद आमात्यकारक और इसी क्रम में भ्रातृकारक, मातृकारक, पुत्रकारक, ज्ञातिकारक और दाराकारक होते हैं.
इस ज्योतिष विधि में ग्रहों की दृष्टि के सम्बन्ध में बताया गया है कि सभी चर राशियां अपनी अगली स्थिर राशियों को छोड़कर अन्य सभी स्थिर राशियों को देखती हैं. सभी स्थिर राशियां अपनी पिछली चर राशियों के अतिरिक्त अन्य राशियों पर दृष्टि डालती है. द्विस्वभाव राशियां परस्पर दृष्टिपात करती है.
पद लग्न: (Pada Lagna according to Jaimini Astrology)
जैमिनी ज्योतिष पद्धति में लग्नेश लग्न स्थान से जितने भाव आगे स्थित होता है उस भाव से उस भाव से उतने ही भाव आगे जो भाव होता है उसे पद या अरूढ़ लग्न के नाम से जाना जाता है. इस विधा में उप पद लग्न भी होता है.
द्वादशेश द्वादश भाव से जितने भाव आगे होता है उस भाव से उतने भाव आगे आने वाले भाव को उप पद लग्न कहा जाता है. फलकथन की दृष्टि से पद लग्न और उप पद लग्न दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं.
जैमिनी ज्योतिष के योग: (Astrological Yoga according to Jaimini Astrology)
वैदिक ज्योतिष की तरह जैमिनी ज्योतिष में भी योग महत्वपूर्ण होते हैं. इस विधि में योगो के नाम और उनके बीच सम्बन्ध को अलग तरीके से रखा गया है जो इस प्रकार है: आत्मकारक और अमात्यकारक की युति, आत्मकारक और पुत्रकारक की युति, आत्मकारक और पंचमेश की युति, आत्मकारक और दाराकारक की युति, अमात्यकारक और पुत्रकारक की युति इसी क्रम में अमात्यकारक और अन्य कारकों के बीच युति सम्बन्ध बनता है. इन युति सम्बन्धों के आधार पर शुभ और अशुभ स्थिति को जाना जाता है.
राशियों की दशा अन्तर्दशा: (Rashi Antardasha Jaimini Astrology)
ज्योतिष की अन्य विधियों में जहां राशि स्वामी, ग्रहों की दृष्टि एवं ग्रहों की दशा अंतर्दशा और गोचर का विचार किया जाता है वहीं जैमिनी ज्योतिष (Jaimini Jyotish) में राशियों को प्रमुखता दी गई है. इस विधि में राशियों की दशा और अन्तर्दशा ( Antardasha ) का विचार किया जाता है. प्रत्येक राशि की महादशा में अंतर्दशाओं का क्रम उसी प्रकार होता है जैसे महादशाओं का. इस विधि में राशियों की अपनी महादशा सबसे अंत में आती है.
कारकांश लग्न कुण्डली: (Jaimini Karkamsha Lagna Kundli)
जैमिनी ज्योतिष (Jaimini Astrology) में आत्मकारक ग्रह नवमांश कुण्डली में जिस राशि में होता है वह कारकांश राशि (Karkamsha Rashi) कहलाती है. कारकांश राशि को लग्न माना जाता है और अन्य ग्रहों की स्थिति जन्म कुण्डली की तरह होने पर जो कुण्डली तैयार होती है उसे कारकांश लग्न कुण्डली (Karkamsha Lagna Kundali) कहा जाता है. इस कुण्डली के आधार पर ही जैमिनी (Jaimini Jyotish) ज्योतिष में फलकथन किया जाता है.
Our Free Servicesकारक और दृष्टि (Karak and Aspects according to Jaimini Astrology)
महर्षि जैमिनी (Saga Jaimini) ने जिस ज्योतिष पद्धति को विकसित किया उसे जैमिनी ज्योतिष (Jaimini Jyotish Shashtra) के नाम से जाना जाता है. इसमें राहु केतु को छोड़कर सभी सात ग्रहों को उनके अंशों के अनुसार विभिन्न कारक के नाम से जाना जाता है. जिस ग्रह का अंश सबसे अधिक होता है आत्मकारक कहलाता है. आत्मकारक के बाद आमात्यकारक और इसी क्रम में भ्रातृकारक, मातृकारक, पुत्रकारक, ज्ञातिकारक और दाराकारक होते हैं.
इस ज्योतिष विधि में ग्रहों की दृष्टि के सम्बन्ध में बताया गया है कि सभी चर राशियां अपनी अगली स्थिर राशियों को छोड़कर अन्य सभी स्थिर राशियों को देखती हैं. सभी स्थिर राशियां अपनी पिछली चर राशियों के अतिरिक्त अन्य राशियों पर दृष्टि डालती है. द्विस्वभाव राशियां परस्पर दृष्टिपात करती है.
पद लग्न: (Pada Lagna according to Jaimini Astrology)
जैमिनी ज्योतिष पद्धति में लग्नेश लग्न स्थान से जितने भाव आगे स्थित होता है उस भाव से उस भाव से उतने ही भाव आगे जो भाव होता है उसे पद या अरूढ़ लग्न के नाम से जाना जाता है. इस विधा में उप पद लग्न भी होता है.
द्वादशेश द्वादश भाव से जितने भाव आगे होता है उस भाव से उतने भाव आगे आने वाले भाव को उप पद लग्न कहा जाता है. फलकथन की दृष्टि से पद लग्न और उप पद लग्न दोनों ही महत्वपूर्ण होते हैं.
जैमिनी ज्योतिष के योग: (Astrological Yoga according to Jaimini Astrology)
वैदिक ज्योतिष की तरह जैमिनी ज्योतिष में भी योग महत्वपूर्ण होते हैं. इस विधि में योगो के नाम और उनके बीच सम्बन्ध को अलग तरीके से रखा गया है जो इस प्रकार है: आत्मकारक और अमात्यकारक की युति, आत्मकारक और पुत्रकारक की युति, आत्मकारक और पंचमेश की युति, आत्मकारक और दाराकारक की युति, अमात्यकारक और पुत्रकारक की युति इसी क्रम में अमात्यकारक और अन्य कारकों के बीच युति सम्बन्ध बनता है. इन युति सम्बन्धों के आधार पर शुभ और अशुभ स्थिति को जाना जाता है.
राशियों की दशा अन्तर्दशा: (Rashi Antardasha Jaimini Astrology)
ज्योतिष की अन्य विधियों में जहां राशि स्वामी, ग्रहों की दृष्टि एवं ग्रहों की दशा अंतर्दशा और गोचर का विचार किया जाता है वहीं जैमिनी ज्योतिष (Jaimini Jyotish) में राशियों को प्रमुखता दी गई है. इस विधि में राशियों की दशा और अन्तर्दशा ( Antardasha ) का विचार किया जाता है. प्रत्येक राशि की महादशा में अंतर्दशाओं का क्रम उसी प्रकार होता है जैसे महादशाओं का. इस विधि में राशियों की अपनी महादशा सबसे अंत में आती है.
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