विवाह लग्न और वैवाहिक जीवन (Marriage Ascendant & Married Life)

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुण्डली में मौजूद ग्रह वैवाहिक जीवन को सुखद और कलहपूर्ण बनाते हैं.लेकिन यह तथ्य भी प्रमाणिक है कि अगर वैवाहिक लग्न (marriage ascendant) का विचार सही से किया जाए तो विवाहोपरान्त दामपत्य जीवन में आने वाली परेशानियां काफी हद तक कम हो सकती है और वैवाहिक जीवन सुखद हो सकता है.
विवाह संस्कार को व्यक्ति का दूसरा जीवन माना जाता है.इस आधार पर देखा जाए तो विवाह के समय शुभ लग्न (benefic ascendant) उसी प्रकार महत्व रखता है, जैसा जन्म कुण्डली (birth chart) में लग्न स्थान (ascendant) में शुभ ग्रहों की स्थिति का होता है.विवाह के लिए लग्न निकालाते समय वर वधु की कुण्डलियों का परीक्षण (examination of birth charts)करके विवाह लग्न तय करना चाहिए.अगर कुण्डली नही है तो वर और कन्या के नाम राशि (name according to birth sign) के अनुसार लग्न का विचार करना चाहिए.ज्योतिषशास्त्र के विधान के अनुसार जन्म लग्न (birth ascendant) और राशि (birth sign) से अष्टम लग्न (8th ascendant)अशुभ फलदायी होता है अत: इस लग्न में विवाह का विचार नहीं करना चाहिए.
जन्म लग्न और जन्मराशि (Moon sign) से चौथी और बारहवी राशि अगर गुण मिलान में श्रेष्ठ है तो इस लग्न में विवाह संभव है अन्यथा जन्म लग्न से चतुर्थ और द्वादश राशि के लग्न में विवाह दोषपूर्ण होता है.जिनकी कुण्डली में लग्न से केन्द्र स्थान(center house)में शुभ ग्रह होते हैं उन्हें विवाह लग्न का दोष नहीं लगता है.मंगल लग्न (Mars ascendant) से बुध, गुरू अथवा शुक्र अगर केन्द्र (center house) में या त्रिकोण (trine house) में हों तो विवाह लग्न के कई दोष जैसे दग्धतिथि, अन्ध, बधिर नहीं लगते हैं (dagdh, blind and deaf dosha).विवाह लग्न के संदर्भ में विचार करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि राहु शनि के समान प्रभावकारी होता है और मंगल के समान केतु.
लग्न दोष उपचार (Remedies for inauspicious ascendant):
ज्योतिष विधान के अनुसार विवाह लग्न से ग्यारहवें भाव में सूर्य होने पर लग्न सम्बन्ध दोष नहीं लगता है.लग्नेश (ascenadnt lord) पापी ग्रह स्थान बल (shad bala of malefic planet) से अधिक मजबूत होकर तृतीय, षष्टम अथवा एकादश भाव में होना भी शुभ प्रभाव देता है.अधिमित्र राशि (Adhimitra sign) में जब शुभ ग्रह लग्न पर दृ ष्टि(aspect on Ascendant) डालता है तो विवाह लग्न के दोष कट जाते हैं (If a good friend planet aspects the Lagna, the blemishes are removed).
विवाह लग्न में अमावस्या (New Moon day) और रिक्ता तिथि चतुर्थ, नवम, चतुर्दशी (Rikta lunar day) सहित वर वधू के जन्म नक्षत्र (birth nakshatra) एवं शनिवार, रविवार और मंगलवार का दिन शुभ नही होता है इसी प्रकार गण्डान्त नक्षत्र (gandamoola nakshatra)भी विवाह लग्न के लिए अशुभ माना जाता है.जिस तिथि, मास एवं नक्षत्र(birth date, month and nakshatra) में वर वधु का जन्म हुआ है, विवाह लग्न निकालते समय उनका त्याग करना चाहिए.वर या वधू अपने घर में भाई बहनों में बड़े हों तो ज्येष्ठ मास में विवाह नही करना चाहिए.
विवाह मुहूर्त में दस महादोष (major affliction) माने गये हैं.इनमें से वेध, क्राति साम्य एवं मृत्युवाण अत्यधिक अशुभ होते हैं (vedh, kranti samya and mrityuvaan). विवाह लग्न में इन दोषों का त्याग करना चाहिए.शेष सात दोषों में से चार अल्प दोषों का उपचार होने पर लग्न का विचार किया जा सकता है.विवाह लग्न के संदर्भ में रोहिणी, उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढ़ा, उत्तराफाल्गुनी, रेवती, मूल, स्वाति, मृगशिरा, मघा, अनुराधा तथा हस्त नक्षत्रों को शुभ माना गया है.अगर विवाह के लिए शुद्ध लग्न नहीं निकल रहा है तो गोधूली लग्न (godhuli ascendant) का विचार करना चाहिए.गोधूली लग्न में कोई भी दोष प्रभावी नहीं होता है अत: शुद्ध लग्न (perfect ascendant) के अभाव में यह सर्वोत्तम है.
विवाह संस्कार को व्यक्ति का दूसरा जीवन माना जाता है.इस आधार पर देखा जाए तो विवाह के समय शुभ लग्न (benefic ascendant) उसी प्रकार महत्व रखता है, जैसा जन्म कुण्डली (birth chart) में लग्न स्थान (ascendant) में शुभ ग्रहों की स्थिति का होता है.विवाह के लिए लग्न निकालाते समय वर वधु की कुण्डलियों का परीक्षण (examination of birth charts)करके विवाह लग्न तय करना चाहिए.अगर कुण्डली नही है तो वर और कन्या के नाम राशि (name according to birth sign) के अनुसार लग्न का विचार करना चाहिए.ज्योतिषशास्त्र के विधान के अनुसार जन्म लग्न (birth ascendant) और राशि (birth sign) से अष्टम लग्न (8th ascendant)अशुभ फलदायी होता है अत: इस लग्न में विवाह का विचार नहीं करना चाहिए.
जन्म लग्न और जन्मराशि (Moon sign) से चौथी और बारहवी राशि अगर गुण मिलान में श्रेष्ठ है तो इस लग्न में विवाह संभव है अन्यथा जन्म लग्न से चतुर्थ और द्वादश राशि के लग्न में विवाह दोषपूर्ण होता है.जिनकी कुण्डली में लग्न से केन्द्र स्थान(center house)में शुभ ग्रह होते हैं उन्हें विवाह लग्न का दोष नहीं लगता है.मंगल लग्न (Mars ascendant) से बुध, गुरू अथवा शुक्र अगर केन्द्र (center house) में या त्रिकोण (trine house) में हों तो विवाह लग्न के कई दोष जैसे दग्धतिथि, अन्ध, बधिर नहीं लगते हैं (dagdh, blind and deaf dosha).विवाह लग्न के संदर्भ में विचार करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि राहु शनि के समान प्रभावकारी होता है और मंगल के समान केतु.
लग्न दोष उपचार (Remedies for inauspicious ascendant):
ज्योतिष विधान के अनुसार विवाह लग्न से ग्यारहवें भाव में सूर्य होने पर लग्न सम्बन्ध दोष नहीं लगता है.लग्नेश (ascenadnt lord) पापी ग्रह स्थान बल (shad bala of malefic planet) से अधिक मजबूत होकर तृतीय, षष्टम अथवा एकादश भाव में होना भी शुभ प्रभाव देता है.अधिमित्र राशि (Adhimitra sign) में जब शुभ ग्रह लग्न पर दृ ष्टि(aspect on Ascendant) डालता है तो विवाह लग्न के दोष कट जाते हैं (If a good friend planet aspects the Lagna, the blemishes are removed).
विवाह लग्न में अमावस्या (New Moon day) और रिक्ता तिथि चतुर्थ, नवम, चतुर्दशी (Rikta lunar day) सहित वर वधू के जन्म नक्षत्र (birth nakshatra) एवं शनिवार, रविवार और मंगलवार का दिन शुभ नही होता है इसी प्रकार गण्डान्त नक्षत्र (gandamoola nakshatra)भी विवाह लग्न के लिए अशुभ माना जाता है.जिस तिथि, मास एवं नक्षत्र(birth date, month and nakshatra) में वर वधु का जन्म हुआ है, विवाह लग्न निकालते समय उनका त्याग करना चाहिए.वर या वधू अपने घर में भाई बहनों में बड़े हों तो ज्येष्ठ मास में विवाह नही करना चाहिए.
विवाह मुहूर्त में दस महादोष (major affliction) माने गये हैं.इनमें से वेध, क्राति साम्य एवं मृत्युवाण अत्यधिक अशुभ होते हैं (vedh, kranti samya and mrityuvaan). विवाह लग्न में इन दोषों का त्याग करना चाहिए.शेष सात दोषों में से चार अल्प दोषों का उपचार होने पर लग्न का विचार किया जा सकता है.विवाह लग्न के संदर्भ में रोहिणी, उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढ़ा, उत्तराफाल्गुनी, रेवती, मूल, स्वाति, मृगशिरा, मघा, अनुराधा तथा हस्त नक्षत्रों को शुभ माना गया है.अगर विवाह के लिए शुद्ध लग्न नहीं निकल रहा है तो गोधूली लग्न (godhuli ascendant) का विचार करना चाहिए.गोधूली लग्न में कोई भी दोष प्रभावी नहीं होता है अत: शुद्ध लग्न (perfect ascendant) के अभाव में यह सर्वोत्तम है.
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