जब होता है कालसर्प योग पीड़ादायक (When Does Kalsarpa dosha Cause Pain?)

यह जरूरी नहीं कि जिनकी कुण्डली में कालसर्प योग (Kalsarp Yoga) हैं उन्हें इस योग का अशुभ फल जन्मकाल से ही मिलने लगे. अगर आपकी कुण्डली में शुभ योग हैं तो आपको उनका भी फल मिलता रहेगा परंतु कालसर्प योग (Kal Sarp Yoga) का फल भी आपको भोगना होगा.विशेष स्थिति और समय में कालसर्प योग (Kal Sarp Yoga) अपना प्रभाव दिखायेगा और विपरीत स्थितियों का सामना करना होगा.
कालसर्प का प्रभाव काल (Effective Period of Kalsarp Yoga):
ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार कालसर्प का प्रभाव तब दृष्टिगोचर होता है जब राहु की दशा (major period), अन्तर्दशा (sub-period, प्रत्यान्तर दशा (pratyantar dasha) चलती है .इस समय राहु अपना अशुभ प्रभाव (negative impact) देना शुरू करता है. गोचर (transition) में जब राहु केतु के मध्य सभी गह आ जाते हैं उस समय कालसर्प योग का फल मिलता है.गोचर में राहु के अशुभ स्थिति में होने पर भी कालसर्प योग पीड़ा देता है.
पीड़ादायक कालसर्प:(Harmful Kalsarp Yoga)
कुण्डली में कालसर्प योग किसी भी स्थिति में कष्टदायी होता है, लेकिन कुण्डली में ग्रहों की कुछ विशेष स्थिति होने पर इसके अशुभ प्रभाव में वृद्धि होती है और यह योग अधिक कष्टकारी हो जाता है.कुण्डली में सूर्य और राहु (conjunction of Rahu and Sun) अथवा चन्द्रमा और राहु की युति (conjunction of Rahu and Moon)हो या फिर राहु गुरू के साथ मिलकर चाण्डाल योग (Chandal yoga) बनाता है तब राहु की दशा महादशा के दौरान कालसर्प अधिक दु:खदायी हो जाता है .जिनकी कुण्डली में राहु और मंगल (combination of Rahu and Mars)मिलकर अंगारक योग (angarak yoga) बनाते हैं उन्हें भी कालसर्प की विशेष पीड़ा भोगनी पड़ती है.कालसर्प के साथ नंदी योग (nandi yoga) अथवा जड़त्व योग (jaratwa yoga) होने पर भी कालसर्प अधिक दु:खदायी हो जाता है.
कालसर्प योग की पीड़ा (The problems caused by Kalsarpa Yoga):
कालसर्प योग व्यक्ति के जीवन में उथल पुथल मचा देने वाला होता है .इस अशुभ योग में व्यक्ति का जीवन संघर्षमय बना रहता है एवं कार्यों में बार बार असफलता और बाधाओं से मन परेशान होता है.इस योग के अशुभ फल के कारण मन में भय बना रहता है.लेकिन ग्रहों की कुछ ऐसी स्थितियां हैं जिनसे कालसर्प योग कमज़ोर होता है और यह कम पीड़ादायक होता है.ज्योतिष विधा के अनुसार जब राहु केतु के मध्य 7 ग्रहों में से 6 ग्रह हों और एक ग्रह बाहर हों और वह ग्रह राहु के अंश (degree of Rahu)से अधिक अंश में हो तो कालसर्प योग भंग हो जाता है.कुण्डली में कालसर्प योग हो और द्वितीय अथवा द्वादश भाव में शुक्र स्थित हो तब कालसर्प योग का अशुभ फल नहीं भोगना होता है.कुण्डली में बुधादित्य योग (Budhaditya yoga) होने पर कालसर्प योग का दुष्प्रभाव नहीं भोगना पड़ता है.दशम भाव में मंगल होने (combination of 10th house and Mars) पर भी अशुभ परिणाम नहीं मिलता है.
कुण्डली में शशक योग (shashak yoga) होने पर कालसर्प योग की पीड़ा में कमी आती है . केन्द्र (center)में मेष, वृश्चिक या मकर राशि में चन्द्रमा और मंगल की युति(combination of Mars and Moon) हो और साथ में चन्द्रमा आकर लक्ष्मी योग (laxmi yoga)का निर्माण करता है तब व्यक्ति के लिए कालसर्प पीड़ा दायक नहीं होता है.प्रथम, चतुर्थ, सप्तम अथवा दशम भाव में चार ग्रहों की युति (aspects of 4 planet)हो जिनमें सूर्य, चन्द्र, मंगल, गुरू, शुक्र एवं शनि में से कोई एक स्वगृही (own house) अथवा उच्च राशि (exalted sign) का हो तो कालसर्प से भयभीत होने की आवश्यक्ता नहीं होती है.
कालसर्प का प्रभाव काल (Effective Period of Kalsarp Yoga):
ज्योतिषशास्त्र के नियमानुसार कालसर्प का प्रभाव तब दृष्टिगोचर होता है जब राहु की दशा (major period), अन्तर्दशा (sub-period, प्रत्यान्तर दशा (pratyantar dasha) चलती है .इस समय राहु अपना अशुभ प्रभाव (negative impact) देना शुरू करता है. गोचर (transition) में जब राहु केतु के मध्य सभी गह आ जाते हैं उस समय कालसर्प योग का फल मिलता है.गोचर में राहु के अशुभ स्थिति में होने पर भी कालसर्प योग पीड़ा देता है.
पीड़ादायक कालसर्प:(Harmful Kalsarp Yoga)
कुण्डली में कालसर्प योग किसी भी स्थिति में कष्टदायी होता है, लेकिन कुण्डली में ग्रहों की कुछ विशेष स्थिति होने पर इसके अशुभ प्रभाव में वृद्धि होती है और यह योग अधिक कष्टकारी हो जाता है.कुण्डली में सूर्य और राहु (conjunction of Rahu and Sun) अथवा चन्द्रमा और राहु की युति (conjunction of Rahu and Moon)हो या फिर राहु गुरू के साथ मिलकर चाण्डाल योग (Chandal yoga) बनाता है तब राहु की दशा महादशा के दौरान कालसर्प अधिक दु:खदायी हो जाता है .जिनकी कुण्डली में राहु और मंगल (combination of Rahu and Mars)मिलकर अंगारक योग (angarak yoga) बनाते हैं उन्हें भी कालसर्प की विशेष पीड़ा भोगनी पड़ती है.कालसर्प के साथ नंदी योग (nandi yoga) अथवा जड़त्व योग (jaratwa yoga) होने पर भी कालसर्प अधिक दु:खदायी हो जाता है.
कालसर्प योग की पीड़ा (The problems caused by Kalsarpa Yoga):
कालसर्प योग व्यक्ति के जीवन में उथल पुथल मचा देने वाला होता है .इस अशुभ योग में व्यक्ति का जीवन संघर्षमय बना रहता है एवं कार्यों में बार बार असफलता और बाधाओं से मन परेशान होता है.इस योग के अशुभ फल के कारण मन में भय बना रहता है.लेकिन ग्रहों की कुछ ऐसी स्थितियां हैं जिनसे कालसर्प योग कमज़ोर होता है और यह कम पीड़ादायक होता है.ज्योतिष विधा के अनुसार जब राहु केतु के मध्य 7 ग्रहों में से 6 ग्रह हों और एक ग्रह बाहर हों और वह ग्रह राहु के अंश (degree of Rahu)से अधिक अंश में हो तो कालसर्प योग भंग हो जाता है.कुण्डली में कालसर्प योग हो और द्वितीय अथवा द्वादश भाव में शुक्र स्थित हो तब कालसर्प योग का अशुभ फल नहीं भोगना होता है.कुण्डली में बुधादित्य योग (Budhaditya yoga) होने पर कालसर्प योग का दुष्प्रभाव नहीं भोगना पड़ता है.दशम भाव में मंगल होने (combination of 10th house and Mars) पर भी अशुभ परिणाम नहीं मिलता है.
कुण्डली में शशक योग (shashak yoga) होने पर कालसर्प योग की पीड़ा में कमी आती है . केन्द्र (center)में मेष, वृश्चिक या मकर राशि में चन्द्रमा और मंगल की युति(combination of Mars and Moon) हो और साथ में चन्द्रमा आकर लक्ष्मी योग (laxmi yoga)का निर्माण करता है तब व्यक्ति के लिए कालसर्प पीड़ा दायक नहीं होता है.प्रथम, चतुर्थ, सप्तम अथवा दशम भाव में चार ग्रहों की युति (aspects of 4 planet)हो जिनमें सूर्य, चन्द्र, मंगल, गुरू, शुक्र एवं शनि में से कोई एक स्वगृही (own house) अथवा उच्च राशि (exalted sign) का हो तो कालसर्प से भयभीत होने की आवश्यक्ता नहीं होती है.
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