ज्योतिष में ग्रहों और राशियों की शक्ति ( The Power of Planets and Signs in Astrology)

ज्योतिषशास्त्र के आधार ग्रह और राशि हैं. इन्हीं की स्थितियों के आधार पर व्यक्ति विशेष के जीवन में उतार-चढ़ाव तथा यश-अपयश व सुख-दुख का विचार किया जाता है. यह सभी विषय व्यक्ति को उनकी कुण्डली में स्थिति ग्रह और राशियों की शक्ति के अनुरूप कम व ज्यादा मिलता है. इनके बीच शक्ति का आंकलन ज्योतिषशास्त्र के विशेष नियमों के आधार पर किया गया है. महर्षि जैमिनी ने अपने ज्योतिष में ग्रह व राशियों के बल को मापने के 7 आधार बताए हैं.

1.आत्मकारक ग्रह (Atmakaraka Planet as per Jaimini Astrology)
कुण्डली में आत्मकारक ग्रह को प्रमुख स्थान प्राप्त है. इसका कारण यह है कि जन्मपत्री में राशि स्वामी के बाद आत्मकारक ग्रह ही सबसे शक्तिशाली होता है. (Planet which shares maximum degrees among all the planets in the birth-chart will be the Atmakaraka planet) आत्मकारक ग्रह का दर्जा वह ग्रह पाता है जो जन्मपत्री में सबसे अधिक डिग्री पर स्थित होता है. जिस राशि में आत्मकारक ग्रह होता है वह राशि अन्य राशियों में सबसे बलशाली होती है.

2. संगठन शक्ति द्वारा (Strength from Association as per Jaimini Astrology)
जिस प्रकार सामन्य जीवन में हम देखते हैं कि जिस व्यक्ति के सम्पर्क अधिक होते हैं वह शक्तिशाली होता है, कुल मिलाकर उसी प्रकार संगठन शक्ति के द्वारा राशियों के बल का आंकलन किया जाता है.( Under this, the position and number of planets are determine to consider the powerful sign) इसमें राशियों में मैजूद ग्रहों की संख्या, ग्रहों की स्थिति को आधार माना जाता है. इसे उदाहरण द्वारा इस प्रकार समझा जा सकता है जैसे किसी दो राशियों में से जिस राशि में ग्रह स्थित हों वह राशि बलशाली मानी जाएगी. अगर दोनों राशियों में ग्रहों की संख्या बराबर हैं तो जिस राशि में बलशाली ग्रहों की संख्या अधिक हो व बलशाली मानी जाएगी. अगर दोनों ही राशि इस आधार पर भी समान रूप से बलशाली हों तो इनके बल का विश्लेषण मित्र ग्रह की राशि और स्वगृही ग्रह के आधार पर किया जाता है. यानी ग्रहों की शुभता के आधार पर किया जाता है.

3. स्थान के आधार पर ( Strength from Location as per Jaimini Astrology)
जैमिनी ज्योतिष में राशियों की शक्ति का निर्धारण स्थान के आधार पर भी किया जाता है. इस अधार पर राशि के बल का निर्धारण का तरीका यह बताया गया है कि ( if a planet is located in its own sign then it will be a very strong planet) अगर ग्रह स्वराशि में स्थित हो तो व बलशाली होता है. लेकिन, मूल त्रिकोण में, मित्र ग्रह की राशि में या फिर उदासीन में स्थित है तो इसकी शक्ति कुछ कम होती है. अगर ग्रह अशुभ स्थान में विराजमान हो तो उसकी शक्ति क्षीण होती है. इस सिद्धांत के अनुसार जो ग्रह अपनी राशि में स्थित होता है वह उस ग्रह से अधिक बलशाली माना जाता है जो नीच राशि में स्थित होता है.

(As per this method, if any two signs have an equal strength then their strength will determined through its classification in Fixed, Common and Cardinal signs) इस सिद्धांत के अनुसार बल का विश्लेषण करते समय अगर दो राशियों का बल समान होता है तो इनमें शक्तिशाली राशि का आंकलन राशियों के स्वभाव यानी स्थिर, चर एवं द्विस्वभाव के आधार पर किया जाता है. इस नियम के अनुसार स्थिर राशि को चर से अधिक शक्तिशाली माना जाता है तथा द्विस्वभाव को स्थिर से बलशाली बलशाली माना जाता है. इस तरह जो ग्रह द्विस्वभाव राशि में बैठा होता है वह सभी से बल शक्तिशाली होता है.

4. दृष्टि सम्बन्ध के आधार पर (Strength From Aspect Relationship as per Jaimini Astrology)
( The sign will be strong if Mercury and Jupiter form a conjunction in it)जिस राशि में बुध और गुरु की युति बन रही हो वह राशि अत्यधिक शक्तिशाली होती है तथा जिस राशि में बुध पर गुरु अथवा गुरु की बुध पर दृष्टि पड़ रही हो वह राशि बलशाली होती है. अगर बुध और गुरु अपनी-अपनी राशि में हों तो उनकी राशि अत्यधिक शक्तिशाली हो जाती है.

5. स्वामित्व के आधार पर ( Strength by Lordship as per Jaimini Astrology)
स्वामित्व के आधार पर ग्रहों के बल का आंकलन दो तरीके से किया जाता है.
  • अंश (Ansha)- जो ग्रह कुण्डली में सबसे अधिक अंश पर स्थित होता है वह सबसे मजबूत होता है.
  • मूल त्रिकोण (Mool-Trikona)- (Planets which are placed in the Moola-Trikona sign are stronger than other planets) जो ग्रह मूल त्रिकोण में स्थित होते हैं वह अन्य ग्रहों से अधिक बलवान होते हैं जो स्वराशि में हों, अपने मित्र ग्रह की राशि में हों, शत्रु ग्रह की राशि अथवा उदासीन घर में स्थित हों.
6.विषम राशि (Odd Sign as per Jaimini Astrology)
विषम राशि सम राशियों के मुकाबले में अधिक शक्तिशाली होते हैं.  विषम राशि उन्हें माना जाता है जो प्रथम, तृतीय, पंचम, नवम एवं एकादश भाव में स्थित होते हैं.

7. आत्मकारक ग्रह से स्थिति के आधार पर (Position of the Atmakaraka Planet as per Jaimini Astrology)
आत्मकारक ग्रह से केन्द्र, अपोक्लिम तथा पनफरा भाव में स्थित ग्रहों की स्थिति के आधार पर भी ग्रहों की शक्ति का विवेचन किया जाता है. इस आधार पर जो ग्रह केन्द्र में होते हैं वह सबसे अधिक शक्तिशाली होते हैं. इससे कम वह ग्रह होते हैं जो अपोक्लिम में होते हैं तथा सबसे कम शक्तिशाली वह होते हैं जो पनफर में विराजमान होते हैं.

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