रत्न चिकित्सा और ग्रहों से सम्बन्धित रोग (Gem Therapy and Diseases Related to Planets)

प्राचीन काल से रोगों के उपचार हेतु रत्नों का प्रयोग विभिन्न रूपों में किया जाता रहा है.रत्नों में चुम्बकीय शक्ति होती है जिससे वह ग्रहों की रश्मियों एवं उर्जा को अवशोषित कर लेती है (Gems have therapeutic value due to their innate power).
जिस ग्रह विशेष का रत्न धारण करते हैं उस ग्रह की पीड़ा से बचाव होता है और सकारात्मक प्रभाव प्राप्त होता है.रत्न चिकित्सा का यही आधार है.
बृहस्पति से सम्बन्धित रोग और रत्न (Diseases related to Jupiter and Gems for their therapy)
ग्रहों में बृहस्पति को गुरू का स्थान प्राप्त है.इस ग्रह के अधीन विषय हैं गला, पेट, वसा, श्वसनतंत्र.कुण्डली में जब यह ग्रह कमजोर होता है तो व्यक्ति कई प्रकार के रोग का सामना करना होता हे.व्यक्ति सर्दी, खांसी, कफ से पीड़ित होता है.गले का रोग परेशान करता है, वाणी सम्बन्ध दोष होता है.पीलिया, गठिया, पेट की खराबी व कीडनी सम्बन्धी रोग बृहस्पति के कारण उत्पन्न होता है.रत्नशास्त्र में पुखराज (Pukhraj – Yellow Saphire – is the remedy for Jupiter) को बृहस्पति का रत्न माना गया है.इस रत्न के धारण करने से शरीर में बृहस्पति की उर्जा का संचार होता है जिससे इन रोगों की संभावना कम होती है एवं रोग ग्रस्त होने पर जल्दी लाभ मिलता है.
शुक्र से सम्बन्धित रोग और रत्न (Diseases related to Venus and Gemstone Remedy)
शुक्र ग्रह सौन्दय का प्रतीक होता है.यह त्वचा, मुख, शुक्र एवं गुप्तांगों का अधिपति होता है.कुण्डली में शुक्र दूषित अथवा पाप पीड़ित होने पर व्यक्ति को जिन रोगों का सामना करना होता है उनमें गुप्तांग के रोग प्रमुख हैं.इस ग्रह के कारण होने वाले अन्य रोग हैं तपेदिक, आंखों के रोग, हिस्टिरिया, मूत्र सम्बन्धी रोग, धातु क्षय, हार्निया.इस ग्रह का रत्न मोती (Pearl is the remedy gemstone for Venus) है जो अंतरिक्ष में मौजूद इस ग्रह की रश्मियों को ग्रहण करके इसे व्यक्ति को स्वास्थ्य लाल मिलता है. ज्योतिष के अनुसार आपके लिये कौन सा ग्रह अनुकूल है इसके लिये आप एस्ट्रोबिक्स पर जाकरयहां क्लिक करके अपनी जन्मतिथि, जन्मस्थान एवं जन्म समय भरकर ज्ञात कर सकते हैं
शनि से सम्बन्धित रोग और रत्न (Diseases and gemstones related to Saturn)
ज्योतिषशास्त्र में शनि को क्रूर ग्रह कहा गया है.इस ग्रह का प्रिय रंग काला और नीला है.इस ग्रह का रत्न नीलम (Blue Sapphire is the remedy for Saturn) है.जिससे नीली आभा प्रस्फुटित होती रहती है.इस रत्न को बहुत ही चमत्कारी माना जाता है.इस रत्न को धारण करने से शनि से सम्बन्धित रोग जैसे गठिया, कैंसर, जलोदर, सूजन, उदरशूल, कब्ज, पक्षाघात, मिर्गी से बचाव होता है.जो लोग इन रोगों से पीड़ित हैं उन्हें इस रत्न के धारण करने से लाभ मिलता है.शनि के कारण से दुर्घटना और हड्डियों में भी परेशानी आती है.नीलम धारण करने से इस प्रकार की परेशानी से बचाव होता है.
राहु से सम्बन्धित रोग और रत्न (Diseases related to Rahu and Gem Therapy)
ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि से राहु शनि के समान ही पापी ग्रह है.कुण्डली में अगर यह ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो जीवन में प्रगति को बाधित करने के अलावा कई प्रकार के रोगों से परेशान करता है.इस ग्रह का रत्न गोमेद है जिसे धारण करने से राहु से सम्बन्धित रोग से बचाव एवं मुक्ति मिलती है.राहु के कारण से अक्सर पेट खराब रहता है.मस्तिष्क रोग, हृदय रोग, कुष्ठ रोग उत्पन्न होता है.राहु बाधा से कैंसर, गठिया, चेचक एवं प्रेत बाधा का भी सामना करना होता है.गोमेद चांदी अंगूठी (Gomedh – Cat’s Eye is the remedy for Rahu) में पहनना इन रोगों एवं परेशानियों में लाभप्रद होता है.
केतु से सम्बन्धित रोग और रत्न (Diseases for Ketu and Gem Remedy)
केतु और राहु एक ही शरीर के दो भाग हैं अत: इसकी प्रकृति भी राहु के सामन है.इसे भी क्रूर ग्रहों की श्रेणी में रखा गया है.कुण्डली में केतु पाप प्रभाव में होने पर इसका रत्न लहसुनियां धारण करना चाहिए.लहसुनियां धारण करने से केतु के अशुभ प्रभाव के कारण होने वाले रोगों से मुक्ति एवं राहत मिलती है.अगर शरीर में रक्त की कमी हो, मूत्र रोग, त्वचा सम्बन्धी रोग, हैजा, बवासीर, अजीर्ण तो यह समझ सकते हैं कि केतु का अशुभ प्रभाव आपके ऊपर हो रहा है.अगर आप इस अशुभ प्रभाव से बचना चाहते हैं तो आपको सूत्र मणि अर्थात लहसनियां पहनना चाहिए.लहसुनियां (Lahsuniya is the gemstone for Ketu) पहनने से प्रसव काल में माता को अधिक कष्ट नहीं सहना पड़ता है ज्योतिष के अनुसार आपके लिये कौन सा ग्रह अनुकूल है इसके लिये आप एस्ट्रोबिक्स पर जाकर यहां क्लिक करके अपनी जन्मतिथि, जन्मस्थान एवं जन्म समय भरकर ज्ञात कर सकते हैं
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